Tuesday, September 10, 2013

मजबूर ये हालात, इधर भी है उधर भी 
तनहाई की ये रात, इधर भी है उधर भी 
कहने को बहुत कूच है, मगर किससे कहे हम
कब तक युही खामोश रहे, और सहे हम 
दिल कहता है दुनिया कि हर इक रसम उठा दे
दिवार जो हम दोनो मे है, आज गिरा दे 
क्यो दिल मे सुलगते रहे, लोगो को बता दे 
हान हमको मोहब्बत है, मोहब्बत है, मोहब्बत है 
अब दिल मे यही बात, इधर भी है, उधर भी 

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